दुर्गा पूजा :-
दुर्गा पूजा एक बहुत ही ऐतिहासिक पर्व है। ये पूजा पौराणिक काल से मनाया जा रहा है। इस पूजा को अश्विन महीने यानी के ( सितम्बर से अक्टूबर ) में हिन्दू कैलेंडर के अनुसार मनाते है। यह पूजा हमारे देश अलग अलग राज्यो में अलग नामों से बहुत ही आनंद और उत्सव के साथ मनाया जाता है। पूरे विश्व में सबसे बड़ा और सबसे सुंदर तरीके से दुर्गा पूजा कोलकाता में मनाया जाता है। क्यों के दुर्गा पूजा बंगालियों का त्योहार है। यह त्योहार भारत के कोने कोने में मनाया जाता है। उत्तर में, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, और पश्चिम में कोलकाता से लेकर पूरब में गुजरात, राजस्थान तक सभी राज्यो में ये पूजा मनाया जाता है।
इस त्योहार को कहीं नवरात्रि के नाम से जाना जाता है, तो कहीं देवी सकती के रूप में पूजते है। इस पुजा को देश भर के लोग बहुत आनंद और उल्लास से मनाते हैं। इस पूजा को सत्य के असत्य पर विजय के रूप में मनाया जाता है।
पुरानी ग्रंथो में लिखा है के “महिषासुर नामक एक असुर था जिसने अपने कठोर तपस्या से विश्व चालक भगवान ब्रह्मा को प्रसन्य किया था। और उनसे विश्व में सबसे शक्तिशाली बन्ने का वरदान मांगा। भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त करके महिषासुर खुद को अमर समझने लगे और मानव से लेकर देवता पर अत्याचार करने लगे। महिषासुर का अत्याचार जब चरम सीमा तक पहुंच गया तब सारे देवताओं ने मिलकर देवी दुर्गा का उत्पत्ति कि। सारे देवताओं ने अपनी सकती और अस्त्र देके देवी दुर्गा को शक्ति सरूपिनी महा देवी के रूप में प्रकट की। हिन्दू ग्रंथों में लिखा है के देवी दुर्गा और महिषासुर का युद्ध 6 दिनों तक चला था और सातवे दिन देवी दुर्गा ने महिषसुर का बध किया था।
दुर्गा पूजा महालय से शुरू होकर दशमी पे ख़तम होता है। दुर्गा पूजा में देवी दुर्गा के साथ भगवान गणेश, सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिक इन चारों देव देवायो कि भी पूजा की जाती है। क्युकी ये मान्यता है यह चारों देवी दुर्गा के संतान है। बंगाल में दुर्गा पूजा के समय सभी लोग ब्रथ रखते है, नए वस्त्र पहते है। यह 10 दिन सभी देवी दुर्गा को सच्ची निष्ठा और सच्चे मन से देवी की आराधना करते है।
पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा :-
इस पूजा में पूरे पश्चिम बंगाल को इस तरह सजाया जाता है, जैसे के धरती पर ही स्वर्ग हो। पूजे विश्व में कोलकाता का दुर्गा पूजा और पंडाल सबसे प्रसिद्ध है। सभी देश के कोने कोने से लोग इस पूजा में शामिल होते है, और देवी दुर्गा के रंग में रंग जाते है।
“या देवी सर्वभूतषु शक्ति- रूपेण सस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”।
देवी दुर्गा का यह मंत्र कानों में पड़ते ही शरीर और मन में सकती और पवित्रता का प्रबह सुरु हो जाता हैं।
ये पूजा 7 दिन मनाया जाता है, पहले महालया जिस दिन शक्ति के जनम के रूम में मनाया जाता है। फिर उससे कुछ दिन बाद आता है पंचमी यानी के पांचवें दिन, फिर सस्टी, सप्तमी, अस्थमी , नवमी, और आखिर में आता है दशमी यानी के दशहरा। वैसे तो इन सतो दिनों की अलग अलग महत्यता हैं। पर आख़िर के चार दिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इन दिनों में देवी दुर्गा का ब्रत, देवी की अंजलि, और संध्या आरती, गीत संगीत और दशमी में सारी औरतें सिंदूर लगाके माता को बिदाई देते है। ये सारी चीजे लोगोंको दुर्गा पूजा के प्रति और भी आकर्षित करती है।